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गुप्तोत्तर काल के प्रमुख राजवंश एवं शासक » गुप्तोत्तर काल

गुप्तोत्तर काल के प्रमुख राजवंश एवं शासक » गुप्तोत्तर काल
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गुप्तोत्तर काल के प्रमुख राजवंश – पाल वंश, चालुक्य, राष्ट्रकूट वंश, पल्लव वंश, गंग वंश, चोल वंश

पाल वंश

पाल वंश की स्थापना बौद्ध धर्म के अनुयायी गोपाल (750-770 ई.) ने की थी।

धर्मपाल (गोपाल के पुत्र) ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा नालन्दा विश्वविद्यालय का जीर्णोद्धार कराया।

देवपाल (810-850 ई.) इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

देवपाल ने उड़ीसा व असम को जीता तथा प्रतिहार राजा भोज व राष्ट्रकूट राजा अमोधवर्ष को हराया।

इसके बाद बने शासक महीपाल को राजेन्द्र चोल ने आक्रमण कर पराजित किया।

बादामी के चालुक्य

इस वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम (535-566 ई.) था।

इस वंश की राजधानी वातापी (आधुनिक बादामी) थी।

पुलकेशिन द्वितीय, वातापी के चालुक्य राजवंश का सर्वाधिक योग्य व साहसी शासक था।

उसने हर्षवर्धन को नर्मदा तट पर पराजित किया। पुलकेशिन द्वितीय ने पर्शिया के राजा खुसरो द्वितीय के दरबार में अपना दूत भेजा।

वेनसांग पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल में चालुक्य साम्राज्य की यात्रा पर आया।

चालुक्य उस समय की जलसैन्य शक्ति के रूप में प्रसिद्ध थे।

राष्ट्रकूट वंश

प्रारम्भ में राष्ट्रकूट बादामी के चालुक्यों के सामन्त थे।

इस वंश का संस्थापक दन्तिदुर्ग था।

इस वंश का प्रसिद्ध शासक कृष्ण प्रथम एक महान् निर्माता भी था।

उसने एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण करवाया।

अमोघवर्ष (814 ई. – 876 ई.) धर्म और साहित्य में विशेष रुचि रखता था।

वह विद्वानों एवं कलाकारों का आश्रयदाता था। उसने पहली कन्नड़ कविता ‘कविराज मार्ग’ तथा ‘प्रश्नोत्तर मल्लिका’ लिखी।

इस वंश के शासक कृष्ण तृतीय ने एक विजय स्तम्भ तथा रामेश्वरम् में एक मन्दिर का निर्माण करवाया।

पल्लव वंश

पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक सिंहविष्णु (574 ई. -600 ई.) को माना जाता है।

इसस वंश की राजधानी कांची थी।

नरसिंहवर्मन (630 ई.-668 ई.) पल्लव वंश सर्वाधिक यशस्वी शासक था।

नरसिंहवर्मन ने महाबलीपुरम नगर की स्थापना की तथा महाबलीपुरम के प्रसिद्ध एकात्मक रथो (सात पैगोड़ा) का निर्माण भी उसी ने करवाया।

नरसिंहवर्मन के ही शासनकाल में हवेनसांग ने कांची की यात्रा की थी।

गंग वंश

गंग शासक नरसिंह देव ने कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर बनवाया।

गंग वंश के ही शासक अनन्तवर्मन ने पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथपुरी मन्दिर का निर्माण करवाया।

गंग वंश से पहले उड़ीसा में शासन करने वाले केसरी शासकों ने भुवनेश्वर के प्रसिद्ध लिंगराज मन्दिर का निर्माण करवाया था।

चोल वंश

इस वंश का संस्थापक विजयालय (846 ई.-871 ई.) था। यद्यपि चोलों का प्रारम्भिक इतिहास संगम युग (तीसरी शताब्दी ई. पू.) से आरम्भ होता है परन्तु इस वंश का राजनीतिक उत्कर्ष नवीं शताब्दी ई. में हुआ।

इनकी राजधानी तंजौर (आधुनिक थंजावुर) थी।

राजराज प्रमि को इस वंश का वासतविक संस्थापक माना जाता है।

उसने सम्पूर्ण दक्षिण भारत में अपना विजय परचम लहराया।

उसने उत्तरी श्रीलंका को विजित कर इसका नाम ‘मामुण्डी चोलमण्डलम्’ रखा उसने तंजौर में प्रसिद्ध ‘राजराजेश्वर मन्दिर’ (बृहदेश्वर शिव मन्दिर) का निर्माण करवाया।

भगवान शिव की नृत्य दर्शाती कलाकृति ‘नटराज’ इसी काल से सम्बन्धित है।

चोलों के शासनकाल में ही कला की ‘गोपुरम’ शैली का जन्म हुआ।

इस शासनकाल में स्थानीय सरकार हुआ करती थी (वर्तमान के पंचायती राज का सिद्धान्त यहीं से लिया गया राजराज प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र राजेन्द्र प्रथम (1014 ई.-1044 ई.) शासक बना।

रजेन्द्र प्रथम ने 1017 ई. में सम्पूर्ण श्रीलंका को विजित कर वहाँ के शासक महेन्द्र पंचम को बन्दी बनाकर रखा उसने पांड्यो और चेरों के राज्यों को भी विजित किया था।

राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल के पाल शासक महीपाल को भी पराजित किया।

इस विजय के उपरांत उसने ‘गंगईकोण्ड’ की उपाधि ग्रहण की।

राजवंशस्थानप्रमुख शासकउपलब्धि
मैत्रकवल्लभी1. गुप्तोत्तर काल के नवोदित राज्यों में सबसे लंबे समय तक शासन किया (लगभग 300 वर्ष)।
2. अरबों द्वारा परास्त किये गये।
मौखरीकन्नौजहरिवरमन
इसान
वरमन
सर्ववरमन
1. इन्होंने हुणों कोपराजित कर पूर्वी भारत को उनकेआक्रमण से बचाया।
2. हर्ष ने इनको अपने राज्य में विलीनकर लिया।
चंद्र (गौड़)बंगालशशांक1. थानेश्वर और कन्नौज शासकों से इसकी शत्रुता रही।
परवती गुप्तमगधमहासेन गुप्त1. मौखरियों से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रही।
पुष्यमित्रथानेश्वरपुश्यमित्र
आदित्य
वर्मन
प्रभाकर
वर्धन
राज्य वर्धन
हर्ष वर्धन
1. गुप्तों के उपरांत उत्तर भारत में सबसे विशाल राज्य स्थापित किया।

पल्लव वंश की स्थापना सिंहविष्णु ने की थी। इसकी

राजधानी काँची (काँचीपुरम्) थी। ‘मत्तविलास प्रहसन’ की रचना पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन ने की।

महाबलीपुरम् के रथ मन्दिर का निर्माण पल्लव नरेश नरसिंहवर्मन प्रथम के समय हुआ था।

उसने वातापीकोंड की उपाधि ग्रहण की। राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दन्तिदुर्ग ने की थी। इसकी राजधानी मान्यखेट थी।

ध्रुव प्रथम राष्ट्रकूट (दक्षिण भारत) शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया।

अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था, इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग’ की रचना की।

एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था

एलोरा एवं एलिफेंटा गुहा मन्दिरों का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों के द्वारा हुआ। चोल वंश की स्थापना विजयालय ने की थी।

इसकी राजधानी तंजोर थी।

चोल शासक राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण करके विजित प्रदेशों को चोल साम्राज्य का नया प्रान्त बनाया।

राजराज प्रथम ने तंजौर में ‘राजराजेश्वर का शिव मन्दिर’ (वृहदेश्वर मन्दिर) बनवाया।

राजराज प्रथम ने शैलेन्द्र शासक को नागपट्टनम् में बौद्ध मठ स्थापित करने की अनुमति दी थी।

राजेन्द्र प्रथम ने गंगाघाटी के सफल अभियान के क्रम में पाल वंश के शासक महिपाल को पराजित किया।

इस विजय की स्मृति में उसने ‘गंगैकोण्डचोलपुरम्’ नगर का निर्माण किया। स्थानीय स्वशासन चोल साम्राज्य की प्रमुख विशेषता थी।

पाल वंश का संस्थापक गोपाल था। उसने औदन्तपुरी (बिहार शरीफ) में बौद्ध विहार की स्थापना की थी।

धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया।

कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरुआत प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी तथा त्रिपक्षीय संघर्ष का अन्त गुर्जर-प्रतिहारों की अन्तिम विजय से हुआ था।

कश्मीर के कार्कोट वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीड ने प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर ‘मार्तण्ड’ का निर्माण करवाया

“राजतरंगिणी’ का रचयिता कल्हण कश्मीर के लौहार वंश के शासक हर्ष के दरबार में रहता था।

कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ की रचना लौहार वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के काल में की।

उड़ीसा के गंग वंश के शासक नरसिंह प्रथम ने भी कोणार्क में सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया।

चन्देल वंश का संस्थापक नन्नुक था। इसकी राजधानी खजुराहो थी।

खजुराहो के मन्दिरों का निर्माण चन्देलों ने करवाया था।

परमारों की राजधानी उज्जैन थी, बाद में चलकर धारा उनकी राजधानी बनी।

परमारवंशी शासक भोज एक महान् कवि था, उसने कविराज की उपाधि धारण की थी।

भोज की कुछ रचनाओं में- “समरांग सूत्रधार’, ‘सरस्वती-कण्ठाभरण’, ‘विद्याविनोद’, ‘राजमार्तण्ड’ आदि प्रमुख हैं।

भोज ने धार में एक सरस्वती मन्दिर की स्थापना की।

चौहान शासक अजयपाल ने अजमेर नगर की स्थापना की।

पृथ्वीराज चौहान को ‘रायपिथौरा’ भी कहा जाता है।

उसके राजकवि चन्दबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक महाकाव्य लिखा।

पृथ्वीराज चौहान ने तराईन के प्रथम युद्ध (1911 ई.) में मुहम्मद गोरी को पराजित किया, किन्तु तराईन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) में गोरी से पराजित हो गया।

अनंगपाल तोमर ने दिल्ली शहर की नींव डाली थी।

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