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महाजनपद | महाजनपद काल | 16 महाजनपद का इतिहास

महाजनपद | महाजनपद काल

  • छठी शताब्दी ई. पू. में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार लोहे के व्यापक स्तर पर प्रयोग होने से बड़े-बड़े प्रादेशिक एवं जनपद राज्यों के निर्माण की परिस्थितियाँ बन गईं।
  • लोहे के हथियारों के कारण योद्धावर्ग महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगे।
  • खेती के औजारों से किसान अधिक अनाज पैदा करने लगे।
  • अधिशेष उत्पादन के कारण ही छोटे-छोटे जनों ने बड़े-बड़े जनपदों और फिर महाजनपदों का आविर्भाव भी होने लगा, जिनका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में मिलता है।
  • इनमें मगध, अवन्ति, वत्स, कौशल, सबसे प्रमुख राज्य थे, जिनमें मगध ने कालान्तर में सोलह महाजनपदों में सर्वोच्च स्थान प्रापत करने में सफलता प्राप्त की थी, जिसका प्रथम राजवंश हर्यक वंश था, जिसकी स्थापना बिम्बिसार ने 544 ई. पू. में की थी तथा जिसकी मृत्यु 492 ई. पू. में होने पर अजातशत्रु 492 ई. पू. से 461 ई. पू. तक व फिर उदायिन 461-412 ई. पू. तक गद्दी पर बैठा।
  • मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिव्रज या राजगृह थी, परन्तु उदायिन ने इसे बदलकर पटना या पाटलिपुत्र कर दिया था और उदायिन के पश्चात् शिशुनाग वंश मगध की राजगद्दी पर बैठा तथा शिशुनाग वंश के पश्चात् नन्दवंश और उसके पश्चात् मौर्य वंश, गुप्त वंश जैसे कीर्तिपूर्ण राजवंशों ने प्राचीन भारतीय इतिहास में अमर नायकों की भूमिका निभाई।
महाजनपद | महाजनपद काल | 16 महाजनपद का इतिहास
महाजनपद | महाजनपद काल | 16 महाजनपद का इतिहास

16 महाजनपद ( 16 Mahajanapadas ) और उनकी राजधानी – छठी शताब्दी ईo पूo भारत में 16 महाजनपदों का अस्तित्व था। इसकी जानकारी बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय और जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र से प्राप्त होती है। तमिल ग्रन्थ शिल्पादिकाराम में तीन महाजनपद – वत्स, मगध, अवन्ति का उल्लेख मिलता है। इन 16 महाजनपदों में से 14 राजतंत्र और दो (वज्जि, मल्ल) गणतंत्र थे। बुद्ध काल में सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद – वत्स, अवन्ति, मगध, कोसल

सिकंदरमकदूनिया के शासक फिलिप का पुत्र
जन्म356 ई. पू.
भारत पर आक्रमण326 ई. पू.
पश्चिमोत्तर भारत की स्थिति28 राज्यों में विभाजित (पुरू, अभिसार, पूर्वी व पश्चिमी गांधार, कठ, सौभूति,
मालव, क्षुद्रक, अम्वष्ठ, भद्र ग्लौगनिकाय आदि।)
पोरस से युद्ध ( वितस्ता या हाइडेस्पीज का युद्ध )झेलम के किनारे, सिकंदर विजयी, पोरष की वीरता से प्रभावित हो राज्य वापस किया
यूनानी सेना का विद्रोहव्यास नदी के आगे जाने से इंकार
मगधनंद वंश के अधीन
सिकंदर की मृत्यु323 ई. पू. (भारत से लौटते समय)

काशी महाजनपद – वाराणसी

इसकी राजधानी वाराणसी वरुणा और अस्सी नदी के बीच स्थित थी। यहाँ का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक ब्रह्मदत्त था। प्रारम्भ में यही सबसे शक्तिशाली महाजनपद था। इसका अधिकार कोसल व अंग पर भी था। परन्तु बाद में कोसल की शक्ति के आगे इसने आत्मसमर्पण कर दिया।

कोसल महाजनपद – श्रावस्ती

वर्त्तमान अवध का क्षेत्र इसके अंतर्गत आता था। इसकी राजधानी श्रावस्ती अचिरावती/राप्ती नदी के तट पर बसी थी। यहाँ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक प्रसेनजित इच्छवाकु कुल का था। इसके प्रधानमंत्री ने विद्रोह कर इसके पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया। प्रसेनजित शरण लेने अपने दामाद अजातशत्रु के पास राजगृह पंहुचा परन्तु राजमहल के बाहर ही इसकी मृत्यु हो गयी।

अंग महाजनपद – चम्पा

यह आधुनिक भागलपुर और मुंगेर जिले में अवस्थित था। इसकी राजधानी चम्पा थी। बुद्ध काल में चम्पा की गणना भारत के 6 महानगरों में की जाती थी। यहाँ का शासक दधिवाहन महावीर स्वामी का भक्त था।

चेदि महाजनपद – शक्तिमती

ये आधुनिक बुन्देलखण्ड में अवस्थित था।

16 महाजनपद काल | महाजनपद से आप क्या समझते हैं
16 महाजनपद काल | महाजनपद से आप क्या समझते हैं

वत्स कौशाम्बी

भगवान बुद्ध के समय यहाँ का शासक उदयन था। इसे अवन्ति के शासक प्रद्योत ने बन्दी बना लिया और अपनी पुत्री वासवदत्ता का संगीत शिक्षक नियुक्त कर दिया। उदयन और वासवदत्ता के बीच प्रेमसंबंध हो गए तो वे भागकर कौशाम्बी आ गए। भास ने इसी पर आधारित स्वप्नवासदत्ता नामक कहानी की रचना की। कौशाम्बी बौद्ध व जैन दोनों धर्मो का प्रमुख केंद्र थी। यह जैनियों के छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्मस्थली है। यहीं के प्रभासगिरि पर्वत पर उन्होंने तप किया था।

कुरु इंद्रप्रस्थ

यह आधुनिक दिल्ली, मेरठ, थानेश्वर के क्षेत्र पर विस्तृत था। महात्मा बुद्ध के समय यहाँ का शासक कोरव्य था। यहाँ के लोग बल-बुद्धि के लिए विख्यात थे। हस्तिनापुर नगर इसी में पड़ता है।

पांचाल – अहिच्छत्र व काम्पिल्य

यह आधुनिक रुहेलखण्ड के बरेली, बदायूं, फर्रुखाबाद के क्षेत्र में विस्तृत था। पांचाल दो भागों में विभक्त था। उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र या अहिच्छेत्र और दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी। कान्यकुब्ज (कन्नौज) इसी के अंतर्गत आता था।

मत्स्य – विराटनगर

यह आधुनिक जयपुर के निकट अवस्थित था। इसका संस्थापक विराट था।

सूरसेन – मथुरा

यहाँ का शासक अवन्तीपुत्र था।

अश्मक – पैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल

यह दक्षिण में स्थित एकमात्र महाजनपद था। यह गोदावरी के तट पर अवस्थित था। यहाँ पर इच्क्षवाकु वंश के शासकों का शासन था।

अवन्ति उज्जैन, महिष्मति

यहाँ का शासक चंडप्रद्योत महासेन था। यह राज्य दो भाग में विभक्त था। उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जैन और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी महिष्मति थी। दोनों राजधानियों के बीच वेत्रवती नदी बहती थी। मगध के अतिरिक्त यही राज्य था जहाँ लोहे की खाने थीं।

गांधार तक्षशिला

गांधार काबुल घाटी में अवस्थित था। पुष्कलावती यहाँ का द्वितीय प्रमुख नगर था।

कम्बोज – हाटक/राजपुर

कम्बोज अपने घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। यह गांधार का पड़ोसी राज्य था और अफगानिस्तान में पड़ता था। कौटिल्य ने इसे वार्ताशस्त्रोजीवी संघ कहा है।

वज्जि – वैशाली

यह आठ जनों का संघ था जिनमे सबसे प्रमुख लिच्छवि थे। इसकी राजधानी गण्डक नदी के तट पर अवस्थित थी। गंगा नदी वज्जि और मगध के बीच की सीमा का निर्धारण करती थी। इस संघ में आठ न्यायालय थे। लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है।

मल्ल – कुशीनगर, पावा

यह आधुनिक उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में पड़ता था। यह दो भागों में विभक्त था। इसके उत्तरी भाग की राजधानी कुशीनगर और दक्षिणी भाग की राजधानी पावा थी। बुद्ध की मृत्यु के बाद मल्लों ने अपनी स्वतंत्रता खो दी। वे मगध की साम्राज्यवादी नीतियों का शिकार हो गए।

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