सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश

Home » Jaimini.in » Explore Diverse Knowledge for Personal Growth and Financial Empowerment – Posts Page » सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश

सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश

सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश
सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश

हर्षवर्धन का इतिहास

हर्षवर्धन (590-647 ई.) इस वंश का महान् शासक था। उसने अपनी राधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित की।

पुष्यभूति वंश की स्थापना थानेश्वर में हुई थी। इस वंश का पहला महत्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्द्धन था।

बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था। उसने ‘हर्षचरित’ की रचना की। हर्ष ने स्वयं ‘नागानन्द‘, ‘रत्नावली’ एवं प्रियदर्शिका‘ नामक नाटकों की रचना की थी।

हर्ष का चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से नर्मदा नदी तट पर युद्ध हुआ था, जिसमें हर्ष की पराजय हुई थी।

हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। उसका यात्रा-वृत्तांत ‘सी-यू–की’ के नाम से जाना जाता है।

हर्ष ने 606 ई. सन् में शासन की बागडोर संभाली।

हर्ष 612 ई. में पूर्ण राजकीय उपाधि (Full regal title) महाराजाधिराज ग्रहण की।

हर्ष ने 641 ई. में परम भट्टारक मगध नरेश (king of Magadha) की उपाधि ग्रहण की।

हर्ष का दूसरा नाम शिलादित्य (Shiladitiya) था। हर्षवर्धन के दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार को चालुक्य शासक पुलकेशिन् द्वितीय (Pulekesin II) ने रोका।

हर्षवर्धन ने महायान बौद्ध धर्म का संरक्षण प्रदान किया। बाण, मयूर, दिवाकर और वेनसांग आदि विद्वान उसके संरक्षण में थे।

हर्ष ने 624 ई. में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया।

हर्षवर्धन के साम्राज्य में पंच प्रदेश (Five indies) (पंजाब, कन्नौज, गौड़ (बंगाल), मिथिला, उड़ीसा), वल्मी तथा मालवा भी शामिल थे।

हर्षवर्धन ने 641 ई. में अपने दूत चीन भेजे तथा 643 ई. और 646 इ. में दो चीनी दूत उसके यहां आये।

हर्षवर्धन ने तीन नाटक- नागानंद (Nagananda) रत्नावली (Ratnavali) तथा प्रियदर्शिका (Priyadarshika) लिखे।

हर्षवर्धन अपने राजस्व का 1/4 शिक्षा पर 1/4 अपने ऊपर, 1/4 धार्मिक कार्यों पर तथा 1/4 अधिकारियों तथा जनसेवकों के भरण-पोषण पर खर्च करता था।

हर्षवर्धन ने कश्मीर शासक से बुद्ध के दंत अवशेष (Tooth rilic) बलपूर्वक प्राप्त किये।

हर्षवर्धन को बांसखेरा तथा मधुबन अभिलेखों में परम महेश्वर कहा गया है।

हर्षवर्धन अपने सैनिक ीीयान पर निकलने से पूर्व रूद्र शिव (Rudra-Siva) की आराधना करता था।

हर्ष की मृत्यु 647 ई. में हुई। हर्ष की शासन व्यवस्था महान गुप्त शासकों के शासन व्यवस्था के समान थी।

सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश
सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास ( 590-647 ई. ) » पुष्यभूति वंश

हर्ष ने अपने साम्राज्य को प्रशासनिक सुविधा के लिए निम्नलिखित स्तरों में खंडित किया

स्तरीय खंडनप्रधान
भुक्तिउपरिक
ग्रामग्रामिक
विषयविषयपति

हर्ष के प्रशासन में ‘अंवति‘ युद्ध और शांति का अधिकारी था।

सिंघनाद सेनापति था।

कुन्तल अश्वसेना का प्रधान था।

स्कंदगुप्त हस्तिसेना का प्रधान था, तथा सामंत-महाराज नागरिक प्रशासन का प्रमुख था।

हर्ष के काल में उच्च अधिकारियों को वेतन के रूप में जागीरें (भूमि अनुदान) दी जाती थी।

हर्ष के आय का प्रधान स्रोत भाग था, जो एक प्रकार का भूमि कर था और उत्पादन का 1/6 भाग था।

हर्ष के समय नालंदा विश्वविद्यालय महाग्रहारा कहा जाता था, जो शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। हर्ष के शासन काल में जाति प्रथा जटिल थी, सती प्रथा का प्रचलन था, परन्तु पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी।

हर्ष ने अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं छोड़ा था, अतः उसके उपरांत वर्धन वंश (पुष्पभूति वंश) का अंत हो गया।

हर्ष को हिन्दू काल का अकबर भी कहा जाता है।

Rate this post
What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro
Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Refresh