Bharatpur – भरतपुर

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राजस्थान का प्रवेशद्वार के नाम से प्रसिद्ध Bharatpur – भरतपुर की स्थापना जाट राजा सूरजमल द्वारा की गई थी।

डीग भरतपुर से लगभग 37 किमी. उत्तर पश्चिम की ओर स्थित जलमहलों की नगरी के रूप में प्रसिद्ध स्थल Bharatpur – भरतपुर रियासती शासकों की प्राचीन राजधनी रहा है। इसका पुराना नाम दीर्घपुर था।

→ यह कस्बा भव्य महलों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें प्रमुख हैं-गोपाल महल (सूरजमल द्वारा गोपालसागर झील में बलुआ पत्थरों से निर्मित), डीग महल | (1725 ई. में राजा बदनसिंह द्वारा निर्मित) किशन भवन, सूरज भवन, नंद भवन आदि।

मोती झील : यह झील भरतपुर नगर के पश्चिम में लगभग 3 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसे भरतपुर की जीवनरेखा कहते है।

लोहागढ़ : Bharatpur – भरतपुर के उत्तर पश्चिम में स्थित इस किले का निर्माण 1733 ई. में राजा सूरजमल द्वारा करवाया गया। यह अपनी विशिष्ट स्थापत्य शैली एवं अजेयता (अंग्रेज भी इसे नहीं जीत पाए) के कारण प्रसिद्ध है। लॉर्ड लेक ने 1803 ई. में इसे किले पर आक्रमण किया था किन्तु वह उसे जीत नहीं पाया।

सेवर :यहाँ राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र स्थित है, जिसकी स्थापना 20 अक्टूबर, 1993 को की गई।

रुपवास : राणा सांगा एवं बाबर के मध्य हुये प्रसिद्ध खानवा (गम्भीरी नदी के तट पर) युद्ध (1527 ई.) की रणस्थली।

लक्ष्मण मंदिर : भरतपुर शहर के मध्य स्थित भारत में लक्ष्मण जी का एकमात्र मंदिर जिसका निर्माण महाराजा बलदेवसिंह ने करवाया। |

गंगा मंदिर : Bharatpur – भरतपुर शहर के मध्य स्थित यह एक कलात्मक देवालय है। लाल रंग के पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की दो मंजिला इमारत 84 खम्भों पर टिकी हुई है। । इसमें 12 फरवरी, 1937 को महाराज ब्रजेन्द्र सिंह ने गंगा की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई।

ऊषा मंदिर : लाल पथरों के विशाल स्तम्भों पर खड़े इस मंदिर की स्थापना बाणासुर ने करवायी थी। प्रेमाख्यान पर आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्धार शासक लक्ष्मण सेन की रानी चित्रलेखा व पुत्री मंगलाराज ने 936 ई. में करवाया।

नोह : इस गाँव में लगभग 1700 साल पुरानी पक्षी चित्रित इट्टिका (ईंट) व 3 हजार साल पुराना लोहे का टुकड़ा, ताँबे का हथफूल मिला है। ईटों को कुषाणकालीन माना जाता है।

– बयाना का किला प्राचीनकाल में शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपंथ कहा जाने वाला बयाना के एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित किला। इसे अपनी दुर्भद्यता के कारण विजयगढ़ व बादशाह दुर्ग भी कहा जाता है। स्थल दुर्ग की श्रेणी में आने वाले इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल ने करवाया।

इस दुर्ग में समुद्रगुप्त द्वारा खड़ा किया गया एक विजय स्तम्भ भी है जो राजस्थान का पहला विजय स्तम्भ है। |

केवलादेव अभ्यारण्य : पर्यटन परिपथ स्वर्ण- त्रिकोण पर स्थित भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभ्यारण्य विश्व में पक्षियों का स्वर्ग कहलाता है। सन् 1964 में इसे अभ्यारण्य और 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। डॉ. सलीम अली के प्रयासों से इसे पक्षी अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया।

– जैव विविधता की सुरक्षा के लिए यूनेस्को ने इसे विश्व प्राकृतिक धरोहर (1985 में) घोषित किया।

→ प्रमुख विशेषता साईबेरियन सारस है।

– यहाँ ऑस्ट्रियन कम्पनी सारोस्की की आर्थिक मदद से 2 करोड़ रुपये की लागत से पक्षियों और वन्यजीवों की महत्वपूर्ण जानकारी देने हेतु डॉ. सलीम अली इंटरप्रेटेशन सेंटर बनाया गया है।

– यहाँ फरवरी, 2006 में सफेद सारसों को बचाने के लिए ऑपरेशन राजहंस नामक अभियान चलाया गया।

कुम्हेर : प्राचीन काल में नमक और रोली के उत्पादन के लिए विख्यात कुबेर नगरी (कुम्हेर) भरतपुर राज्य की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ स्थित दुर्ग | एवं जलमहल का निर्माण महाराजा सूरजमल ने अपनी प्रिय रानी हसिया के लिए करवाया था।

जसवंत पशुमेला Bharatpur – भरतपुर के महाराज जसवंतसिंह की स्मृति में आयोजित यह पशु मेला हरियाणवी नस्ल के बैलों की बिक्री के लिए प्रसिद्ध है।

डीग का किला (1730 में बदनसिंह द्वारा निर्मित), उषा मस्जिद (बयाना) आदि यहीं स्थित है।

– राजपूताना के सूरजमल को जाटों का प्लेटो (अफलातून) कहा जाता है। जाट सूरजमल ने ही Bharatpur – भरतपुर राज्य की नींव 1733 ई. में रखी।

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